hasya kavita

Hasya Kavita | 11+ Best Hasya Kavita in Hindi

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BEST HASYA KAVITA IN HINDI | HINDI HASYA KAVITA

दिल को ख़ुशी से भर देने वाली हास्य कविता यहाँ पढ़ें


9. क्या बताएं आपसे | hasya kavita

क्या बताएं आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए

भूख, महंगाई, ग़रीबी इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पांच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है

– हुल्लड़ मुरादाबादी


10. माँ ने प्रभु को फ़ोन किया | hindi hasya kavita

मां ने प्रभु को फोन किया, दोनों बात में गुम

रावण के गुर्गों ने, पकड़ा श्री हनुमान

आग लगाई पूंछ पर, बिफर गए श्रीमान

स्वाहा किया तुरंत ही, सोने का वह होम
रावण डिप्रेशन गया, कैसे भरेगा लोन

विभीषण को फ्रेंड रिक्वेस्ट, प्रभु ने भेजी आज
जीत के बाद पार्टी दूंगा, कहकर किया था साथ

वापस आकर हनुमान ने, बतलाए सब हाल
राम ने बोला मित्रगण, साफ करो हथियार

धनुष बाण काफी है, क्या होगा परमाणु
लंका जब से जल गई, रावण है कंगाल

पार करन को समंदर, तय हुआ एक जहाज
कम पैसे में ले चलों, हुई ऊंची आवाज


11. वर्षा रानी आई | hasya kavita in hindi

वर्षा रानी आई आज लाला को भिगोने।
और लालजी चले गए चद्दर तान सोने।।

सोते हुए लालजी को काटने लगे मच्छर।
समझ आ गया उनको वर्षा रानी का नेचर।।

सो उठ कर बैठे कुर्सी पर लेने लगे उबासी।
और प्राणवायु खींचने लगे बिल्कुल ताज़ी ताजी।।

ताजी ताजी प्राणवायु संग आया एक उत्तम विचार।
बोले प्रिय भाग्यवान बनने दो कुछ चटपटा मसालेदार।।

चटपटा मसालेदार सुनकर पत्नी का माथा ठनका।
पर नई पत्नी होवे देवी इतनी जल्दी ना हो सके सूर्पणखा।।

सूर्पणखा रूप छिपा बोली तो कीजिए आप मेरी मदद।
आखिर आप बने है मेरे जीवनसाथी, ताजीवन हमदर्द।।

हमदर्द कि बात सुन लालजी लगे कमर पकड़ कहराने।
आलसी इस कविता के कवि समान सो ढूंढ़न लागे बहाने।।

बहाने लगा बोले प्रियतमा मेरे अंग अंग में दर्द है।
जाड़े के इस मौसम है तुम्हारा प्यार कितना बेदर्द है।

किन्तु बेदर्द हाथों को ना बनाओ, बनाओ प्रिय पकोड़े।
तुम खा लेना थोड़ा ज्यादा, हम खा लेंगे थोड़े।

थोड़े ज्यादा की बात नहीं, बात है यह जिम्मेदारी की।
पकोड़े की इच्छा तो पत्नी के प्रति प्रेम व समझदारी की।


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