21 Best Tulsidas ke Dohe | तुलसीदास के २१ दोहे

प्रस्तुत है विश्व प्रसिद्ध Tulsidas Ke Dohe. जो आपको जीवन जीने का सही तरीका एवं सही विचारों का पालन करने में सहयोग करेगा । यहां दोहे पढ़ें अर्थ के साथ विस्तार रूप में और जीवन का आनंद उठाएं |

Presenting the world famous Tulsidas Ke Dohe. Which will help you to follow the right way of living and following the right ideas. Read couplets here in detail form with meaning and enjoy life.

तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध गोस्वामी तुलसीदास ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए और बड़े होकर ब्राह्मण संत बने। उन्होंने संस्कृत और अवधी में कई लोकप्रिय किताबें लिखी हैं, लेकिन उनका सबसे लोकप्रिय एक महाकाव्य रामचरितमानस है, जो संस्कृत रामायण का वर्णन है। और वाल्मीकि सहित कुछ और प्रसिद्ध लेखन।

Goswami Tulsidas, popularly known as Tulsidas was born in brahmin family and grown up to be a brahmin saint. He has written many popular books in sanskrit and awadhi but his most popular one is epic Ramcharitmanas, a narration of sanskrit Ramayana. And some more famous writeups including Valmiki.

Tulsidas ke dohe – तुलसीदास के दोहे

tulsi das dohe (1-10)

1.

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||

अर्थ: तुलसीदासजी का ये  कहना  हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो | Tulsidas ke dohe

2.

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |

सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है | Tulsi das

tulsidas ke dohe
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3.

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|

भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||

अर्थ: तुलसीदास जी का कहना हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए| Tulsi das ke dohe

4.

तुलसी मीठे बचन  ते सुख उपजत चहुँ ओर |

बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||

अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी    वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे | Tulsidas ke dohe


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5.

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान|

तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||

अर्थ: तुलसीदास जी का कहना यह है की , जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं| Tulsi das

6.

लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|

अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि, बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता| Goswami Tulsidas ke dohe

7.

नामु राम  को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |

जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

अर्थ: तुलसीदासजी का कहने का यह अर्थ है की राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया | Goswasmi Tulsi das

8.

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |

बिद्यमान  रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||

अर्थ: गोस्वामीजी का कहना है की शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |

tulsi das
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9.

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|

सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|

10.

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|

अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

अर्थ: ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|

Tulsidas ke dohe – तुलसीदास के दोहे

tulsi das dohe (11-21)

11.

सहज सुहृद  गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |

सो  पछिताइ  अघाइ उर  अवसि होइ हित  हानि ||

अर्थ: तुलसीदासजी का कहने का यह अर्थ है की स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |

tulsidas ke dohe
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12.

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|

तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो,  वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो| Tulsi das

13.

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |

पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

अर्थ:  मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |  Goswami Tulsidas ke dohe

14.

सचिव  बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज  धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

अर्थ:  तुलसीदासजी का कहने का यह अर्थ है कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |

15.

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |

ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |  Goswami Tulsidas ke dohe

tulsidas in hindi
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16.

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |

तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

अर्थ:  मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है| Tulsidas ke dohe

17.

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||

अर्थ: किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास|

18.

सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं

धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी

अर्थ :- गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं किमुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते है|  Goswami Tulsidas ke dohe

19.

करम प्रधान विस्व करि राखा,

जो जस करई सो तस फलु चाखा

अर्थ :- तुलसीदासजी का कहने का यह अर्थ है की ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा

20.

आगें कह मृदु वचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई,

जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई,

अर्थ :- तुलसीदासजी का कहने का यह अर्थ है की, ऐसे मित्र जो की आपके सामने बना बनाकर मीठा बोलता है और मन ही मन आपके लिए बुराई का भाव रखता है जिसका मन साँप के चाल के समान टेढ़ा हो ऐसे खराब मित्र का त्याग कर देने में ही भलाई है| Tulsidas ke dohe

Read 101 Kabir ke dohe 

 &  51 Rahim ke dohe

tulsi das
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21.

बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय,

आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय |

 अर्थ :- तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है. ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छुने लगता है |  Goswami Tulsidas ke dohe

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