Desh Bhakti Kavita | 21+ Best Desh Bhakti Kavita in Hindi

14. Aruze Kamyabi Par – अरूज़े कामयाबी पर | desh bhakti kavita in hindi

अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा ।
चखायेंगे मजा बरबादी-ए-गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे-वतन हरगिज।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां और तू कहां होगा ।
यह आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे-कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।
शहीदों की चितायों पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।

-राम प्रसाद बिस्मिल


15. Bharat Janani Teri – भारत जननि तेरी | desh bhakti kavita

भारत जननि तेरी जय हो विजय हो ।
तू शुद्ध और बुद्ध ज्ञान की आगार,
तेरी विजय सूर्य माता उदय हो ।।

हों ज्ञान सम्पन्न जीवन सुफल होवे,
सन्तान तेरी अखिल प्रेममय हो ।।

आयें पुनः कृष्ण देखें द्शा तेरी,
सरिता सरों में भी बहता प्रणय हो ।।

सावर के संकल्प पूरण करें ईश,
विध्न और बाधा सभी का प्रलय हो ।।

गांधी रहे और तिलक फिर यहां आवें,
अरविंद, लाला महेन्द्र की जय हो ।।

तेरे लिये जेल हो स्वर्ग का द्वार,
बेड़ी की झन-झन बीणा की लय हो ।।

कहता खलल आज हिन्दू-मुसलमान,
सब मिल के गाओं जननि तेरी जय हो ।।

-राम प्रसाद बिस्मिल


16. Ae Matribhumi – ऐ मातृभूमि | Desh Bhakti Kavita

ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।

अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।

वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ।

-राम प्रसाद बिस्मिल


 17. Fool – फूल | Desh bhakti kavita in hindi

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल
अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल ।

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल
नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

-राम प्रसाद बिस्मिल