5. चलना हमारा काम है
Chalna Hamara Kaam Hai Best Motivational Poems
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक मंजिल न पा सकूं
तब तक मुझे न विराम है
चलना हमारा काम है.
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बंट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूं
राही हमारा नाम है
चलना हमारा काम है.
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध
इसका ध्यान आठो याम है
चलना हमारा काम है.
इस विषद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुःख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूं
मुझ पर विधाता वाम है
चलना हमारा काम है.
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है
चलना हमारा काम है.
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम
उसी की सफ़लता अभिराम है
चलना हमारा काम है.
फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूंट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल
वह साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है.
कवि –शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ | Shiv Mangal Singh ‘Suman’
MOTIVATIONAL POEM IN HINDI | MOTIVATIONAL POEM
Motivational Hindi Kavita (मोटिवेशनल हिंदी कविता )
6. नर हो, न निराश करो मन को
Nar Ho, Na Nirash Karo Man Ko | motivational poem in hindi
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को.
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न गिरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को.
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो, न निराश करो मन को.
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को.
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को.
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो.
कवि – स्व. मैथलीशरणगुप्त | Late Maithili Sharan Gupt