यहां पढ़िए बेहतरीन कवियों द्वारा बेहतरीन Hasya Kavita. Hasya kavita in hindi जो आपके पढ़ने को आनंदमय बनाने के लिए खूबसूरती से तैयार की गई है।
Read here the best hasya kavita by greatest poets. Hasya kavita in hindi that is beautifully crafted to just make your reading enjoyable.
HASYA KAVITA | HINDI HASYA KAVITA | HASYA KAVITA IN HINDI
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1. एक दिन | hindi hasya kavita
एक दिन मामला यों बिगड़ा
कि हमारी ही घरवाली से
हो गया हमारा झगड़ा
स्वभाव से मैं नर्म हूं
इसका अर्थ ये नहीं
के बेशर्म हूं
पत्ते की तरह कांप जाता हूं
बोलते-बोलते हांफ जाता हूं
इसलिये कम बोलता हूं
मजबूर हो जाऊं तभी बोलता हूं
हमने कहा-“पत्नी हो
तो पत्नी की तरह रहो
कोई एहसान नहीं करतीं
जो बनाकर खिलाती हो
क्या ऐसे ही घर चलाती हो
शादी को हो गये दस साल
अक्ल नहीं आई
सफ़ेद हो गए बाल
पड़ौस में देखो अभी बच्ची है
मगर तुम से अच्छी है
घर कांच सा चमकता है
और अपना देख लो
देखकर खून छलकता है
कब से कह रहा हूं
तकिया छोटा है
बढ़ा दो
दूसरा गिलाफ चढ़ा दो
चढ़ाना तो दूर रहा
निकाल-निकाल कर रूई
आधा कर दिया
और रूई की जगह
कपड़ा भर दिया
– शैल चतुर्वेदी
2. कितनी बार कहा | hindi hasya kavita for students
कितनी बार कहा
चीज़े संभालकर रखो
उस दिन नहीं मिला तो नहीं मिला
कितना खोजा
और रूमाल कि जगह
पैंट से निकल आया मोज़ा
वो तो किसी ने शक नहीं किया
क्योकि हमने खट से
नाक पर रख लिया
काम करते-करते टेबल पर पटक दिया-
“साहब आपका मोज़ा।”
हमने कह दिया
हमारा नहीं किसी और का होगा
अक़्ल काम कर गई
मगर जोड़ी तो बिगड़ गई
कुछ तो इज़्ज़त रखो
पचास बार कहा
मेरी अटैची में
अपने कपड़े मत रखो
उस दिन
कवि सम्मेलन का मिला तार
जल्दी-जल्दी में
चल दिया अटैची उठाकर
खोली कानपुर जाकर
देखा तो सिर चकरा गया
पजामे की जगह
पेटीकोट आ गया
तब क्या खाक कविता पढ़ते
या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर
मंच पर मटकते
– शैल चतुर्वेदी
3. एक माह से लगातार | hasya kavita for kids
एक माह से लगातार
कद्दू बना रही हो
वो भी रसेदार
ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता
खाना खाया नहीं जाता
बोलो तो कहती हो-
“बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।”
कल पड़ौसी का राजू
बाहर खड़ा मूली खा रहा था
ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था
कई बार कहा-
ज़्यादा न बोलो
संभालकर मुंह खोलो
अंग्रेज़ी बोलती हो
जब भी बाहर जाता हूं
बड़ी अदा से कहती हो-“टा….टा”
और मुझे लगता है
जैसे मार दिया चांटा
मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है
ऐनिमा लगवा दो
तो डॉक्टर बोलीं-“डैनिमा लगा दो।”
वो तो ग़नीमत है
कि ड़ॉक्टर होशियार था
नीम हकीम होता
तो बेड़ा ही पार था
वैसे ही घर में जगह नहीं
एक पिल्ला उठा लाई
पाव भर दूध बढा दिया
कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया
तरीफ़ करती हो पूंछ की
उससे तुलना करती हो
हमारी मूंछ की
तंग आकर हमने कटवा दी
मर्दो की रही सही
निशानी भी मिटवा दी
– शैल चतुर्वेदी
4. वो दिन याद करो | Hasya Kavita
वो दिन याद करो
जब काढ़ती थीं घूंघट
दो बीते का
अब फुग्गी बनाती हो फीते का
पहले ढ़ाई गज़ में
एक बनता था
अब दो ब्लाउज़ो के लिये
लगता है एक मीटर
आधी पीठ खुली रहती है
मैं देख नहीं सकता
और दुनिया तकती है
– शैल चतुर्वेदी
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5. मायके जाती हो | hasya kavita in hindi
मायके जाती हो
तो आने का नाम नहीं लेतीं
लेने पहुंच जाओ
तो मां-बाप से किराए के दाम नहीं लेतीं
कपड़े
बाल-बच्चों के लिये
सिलवा कर ले जाती हो
तो भाई-भतीजों को दे आती हो
दो साड़ियां क्या ले आती हो
सारे मोहल्ले को दिखाती हो
साड़ी होती है पचास की
मगर सौ की बताती हो
उल्लू बनाती हो
हम समझ जाते हैं
तो हमें आंख दिखाती हो
हम जो भी जी में आया
बक रहे थे
और बच्चे
खिड़कियो से उलझ रहे थी
हमने सोचा-
वे भी बर्तन धो रही हैं
मुन्ना से पूछा, तो बोला-“सो रही हैं।”
हमने पूछा, कब से?
तो वो बोला-
“आप चिल्ला रहे हैं जब से।”
– शैल चतुर्वेदी
6. बस में थी भीड़ | hasya kavita in hindi
बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी,
और पक्के।
पर अपने बौड़म जी तो
अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे,
धक्कों में विचर रहे थे ।
भीड़ कभी आगे ठेले,
कभी पीछे धकेले ।
इस रेलमपेल
और ठेलमठेल में,
आगे आ गए
धकापेल में ।
और जैसे ही स्टाप पर
उतरने लगे
कण्डक्टर बोला-
ओ मेरे सगे !
टिकिट तो ले जा !
बौड़म जी बोले-
चाट मत भेजा !
मैं बिना टिकिट के
भला हूं,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूं ।
अशोक चक्रधर
7. जो बुड्ढे खूसट | hindi hasya kavita
जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो
बस एक बार, बस एक बार मुझको सरकार बनाने दो।
मेरे भाषण के डंडे से
भागेगा भूत गरीबी का।
मेरे वक्तव्य सुनें तो झगडा
मिटे मियां और बीवी का।
मेरे आश्वासन के टानिक का
एक डोज़ मिल जाए अगर,
चंदगी राम को करे चित्त
पेशेंट पुरानी टी बी का।
मरियल सी जनता को मीठे, वादों का जूस पिलाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
जो कत्ल किसी का कर देगा
मैं उसको बरी करा दूँगा,
हर घिसी पिटी हीरोइन की
प्लास्टिक सर्जरी करा दूँगा;
लडके लडकी और लैक्चरार
सब फिल्मी गाने गाएंगे,
हर कालेज में सब्जैक्ट फिल्म
का कंपल्सरी करा दूँगा।
हिस्ट्री और बीज गणित जैसे विषयों पर बैन लगाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
जो बिल्कुल फक्कड हैं, उनको
राशन उधार तुलवा दूँगा,
जो लोग पियक्कड हैं, उनके
घर में ठेके खुलवा दूँगा;
सरकारी अस्पताल में जिस
रोगी को मिल न सका बिस्तर,
घर उसकी नब्ज़ छूटते ही
मैं एंबुलैंस भिजवा दूँगा।
मैं जन-सेवक हूँ, मुझको भी, थोडा सा पुण्य कमाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
श्रोता आपस में मरें कटें
कवियों में फूट नहीं होगी,
कवि सम्मेलन में कभी, किसी
की कविता हूट नहीं होगी;
कवि के प्रत्येक शब्द पर जो
तालियाँ न खुलकर बजा सकें,
ऐसे मनहूसों को, कविता
सुनने की छूट नहीं होगी।
कवि की हूटिंग करने वालों पर, हूटिंग टैक्स लगाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
ठग और मुनाफाखोरों की
घेराबंदी करवा दूँगा,
सोना तुरंत गिर जाएगा
चाँदी मंदी करवा दूँगा;
मैं पल भर में सुलझा दूँगा
परिवार नियोजन का पचड़ा,
शादी से पहले हर दूल्हे
की नसबंदी करवा दूँगा।
होकर बेधड़क मनाएंगे फिर हनीमून दीवाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।
– अल्हड़ बीकानेरी
8. प्रकृति बदलती | hindi hasya kavita for students
प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो,
बदल रहे अणु, कण-कण देखो
तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो
भाग्य वाद पर अड़े हुए हो।।
छोड़ो मित्र ! पुरानी डफली,
जीवन में परिवर्तन लाओ
परंपरा से ऊंचे उठ कर,
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ ।।
जब तक घर मे धन संपति हो,
बने रहो प्रिय आज्ञाकारी
पढो, लिखो, शादी करवा लो ,
फिर मानो यह बात हमारी।।
माता पिता से काट कनेक्शन,
अपना दड़बा अलग बसाओ
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ।।
करो प्रार्थना, हे प्रभु हमको,
पैसे की है सख़्त ज़रूरत
अर्थ समस्या हल हो जाए,
शीघ्र निकालो ऐसी सूरत।।
हिन्दी के हिमायती बन कर,
संस्थाओं से नेह जोड़िये
किंतु आपसी बातचीत में,
अंग्रेजी की टांग तोड़िये।।
इसे प्रयोगवाद कहते हैं,
समझो गहराई में जाओ
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ
कवि बनने की इच्छा हो तो,
यह भी कला बहुत मामूली
नुस्खा बतलाता हूं, लिख लो,
कविता क्या है, गाजर मूली
कोश खोल कर रख लो आगे,
क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो
उन शब्दों का जाल बिछा कर,
चाहो जैसी कविता बुन लो
श्रोता जिसका अर्थ समझ लें,
वह तो तुकबंदी है भाई
जिसे स्वयं कवि समझ न पाए,
वह कविता है सबसे हाई
इसी युक्ती से बनो महाकवि,
उसे “नई कविता” बतलाओ
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ
चलते चलते मेन रोड पर,
फिल्मी गाने गा सकते हो
चौराहे पर खड़े खड़े तुम,
चाट पकोड़ी खा सकते हो |
बड़े चलो उन्नति के पथ पर,
रोक सके किस का बल बूता?
यों प्रसिद्ध हो जाओ जैसे,
भारत में बाटा का जूता
नई सभ्यता, नई संस्कृति,
के नित चमत्कार दिखलाओ
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ
पिकनिक का जब मूड बने तो,
ताजमहल पर जा सकते हो
शरद-पूर्णिमा दिखलाने को,
‘उन्हें’ साथ ले जा सकते हो
वे देखें जिस समय चंद्रमा,
तब तुम निरखो सुघर चांदनी
फिर दोनों मिल कर के गाओ,
मधुर स्वरों में मधुर रागिनी |
( तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी ..
आलू छोला, कोका-कोला,
‘उनका’ भोग लगा कर पाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ|
– काका हाथरसी
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9. क्या बताएं आपसे | hasya kavita
क्या बताएं आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए
भूख, महंगाई, ग़रीबी इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पांच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े
रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है
– हुल्लड़ मुरादाबादी
10. माँ ने प्रभु को फ़ोन किया | hindi hasya kavita
मां ने प्रभु को फोन किया, दोनों बात में गुम
रावण के गुर्गों ने, पकड़ा श्री हनुमान
आग लगाई पूंछ पर, बिफर गए श्रीमान
स्वाहा किया तुरंत ही, सोने का वह होम
रावण डिप्रेशन गया, कैसे भरेगा लोन
विभीषण को फ्रेंड रिक्वेस्ट, प्रभु ने भेजी आज
जीत के बाद पार्टी दूंगा, कहकर किया था साथ
वापस आकर हनुमान ने, बतलाए सब हाल
राम ने बोला मित्रगण, साफ करो हथियार
धनुष बाण काफी है, क्या होगा परमाणु
लंका जब से जल गई, रावण है कंगाल
पार करन को समंदर, तय हुआ एक जहाज
कम पैसे में ले चलों, हुई ऊंची आवाज
11. वर्षा रानी आई | hasya kavita in hindi
वर्षा रानी आई आज लाला को भिगोने।
और लालजी चले गए चद्दर तान सोने।।
सोते हुए लालजी को काटने लगे मच्छर।
समझ आ गया उनको वर्षा रानी का नेचर।।
सो उठ कर बैठे कुर्सी पर लेने लगे उबासी।
और प्राणवायु खींचने लगे बिल्कुल ताज़ी ताजी।।
ताजी ताजी प्राणवायु संग आया एक उत्तम विचार।
बोले प्रिय भाग्यवान बनने दो कुछ चटपटा मसालेदार।।
चटपटा मसालेदार सुनकर पत्नी का माथा ठनका।
पर नई पत्नी होवे देवी इतनी जल्दी ना हो सके सूर्पणखा।।
सूर्पणखा रूप छिपा बोली तो कीजिए आप मेरी मदद।
आखिर आप बने है मेरे जीवनसाथी, ताजीवन हमदर्द।।
हमदर्द कि बात सुन लालजी लगे कमर पकड़ कहराने।
आलसी इस कविता के कवि समान सो ढूंढ़न लागे बहाने।।
बहाने लगा बोले प्रियतमा मेरे अंग अंग में दर्द है।
जाड़े के इस मौसम है तुम्हारा प्यार कितना बेदर्द है।
किन्तु बेदर्द हाथों को ना बनाओ, बनाओ प्रिय पकोड़े।
तुम खा लेना थोड़ा ज्यादा, हम खा लेंगे थोड़े।
थोड़े ज्यादा की बात नहीं, बात है यह जिम्मेदारी की।
पकोड़े की इच्छा तो पत्नी के प्रति प्रेम व समझदारी की।
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