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Desh Bhakti Kavita | 21+ Best Desh Bhakti Kavita in Hindi

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DESH BHAKTI KAVITA | BEST DESH BHAKTI KAVITA IN HINDI

सबसे बेहतरीन देशभक्ति कविताएँ (desh bhakti kavita) यहाँ पढ़ें


1. Yeh Un Dino Ki – यह उन दिनों की

desh bhakti kavita | desh bhakti kavita in hindi

यह उन दिनों की बात थी,
चुनौतियों से भरी हर रात थी,
जब वीर जवानों ने हमारे
यह संदेश भिजवाया था,
शहीद होकर अमर हो गए
और देश आजाद करवाया था।
हां, यह देश गुलजार है
हवा में इसके प्यार है
छोटे बड़े सब अपने हैं,
खुली आंखों में भी सपने हैं।
हर परिंदा आजाद है,
सभी भाषाओं का अनुवाद है,
हर बूंद में प्यास है,
हर रस्मे मिठास है।
रंगमंच है खुशियों का,
और भविष्य का भी अंजाम है
ज्यादा या थोड़ा ही सही
पर हर दिल में मौजूद कलाम है।

के आंखों में आग
अब भी वही पुरानी है
कि हर दिल में मौजूद
आज भी वही जवानी है
सैकड़ों अपनों को हमने खोया है
रातों में यह दिल,
तड़प-तड़प कर रोया है।
हर एक जान का जवाब चाहिए,
हर एक कतरे का हिसाब चाहिए
कि दुश्मनों जरा दूर से
जख्म अभी भरा नहीं,
के बिखर कर तार-तार हो जाओगे
जवान अभी मरा नहीं।
उस लहू का हर एक बूंद
अब भी सीने में बहता है
उनकी कुर्बानी के हर एक लम्हे को
यह दिल सलाम करता है।
सरहद पर गिरने वाला,
हर एक जिस्म नूरानी था
मरते-मरते 10 मार गिराया,
हां वह खून हिंदुस्तानी था।

रंग बदलता हर मौसम
बस यही सुहाना लगता है,
मेरे मुल्क की मिट्टी के आगे
संसार पुराना लगता है।
सबसे अलग मेरे
भारत की रवानी है,
हर गुजरते पल में इसके,
हजारों अनसुनी कहानी है।
हां हम इस देश के वासी हैं
जहां रोज ही दंगा रहता है,
यहां आम आदमी सड़कों पर
आधा सा नंगा रहता है
इस हाल में भी,
इस दौर में भी,
हर दिल में तिरंगा रहता है ।

Yeh un dino ki baat thi ,
Chunotiyon se bhari har raat thi ,
Jab veer jawano ne humare ,
Yeh sandes bhejwaya tha ,
Saheed ho kar amar ho gaye ,
Aur desh aazad karwaya tha.
Haan ye desh gulzaar hai ,
Hawa mein iske pyaar hai ,
Chhote bade sab apne hain ,
Khuli aankhon me bhi sapne hain ,
Har parinda aazad hai ,
Sabhi bhasaon ka anuwaad hai ,
Har boond mein pyaas hai ,
Har ras me mithaas hai .
Rangmanch hai khushiyon ka ,
Aur bhavishya ka bhi anjam hai ,
Jyada ya thoda hi sahi ,
Par har dil me mauzood KALAM hai ..
Ke aankhon me aag ,
Ab bhi wahi purani hai ,
Ke har dil me mauzood ,
Aaj bhi wahi jawani hai .

Saikdon apno ko humne khoya hai ,
Raaton me yeh dil ,
Tadap-Tadap kar roya hai .
Har ek jaan ka jawab chahiye ,
Har ek qatre ka hisab chahiye ,
Ke dushmano zara door se ,
Zakhm abhi bhada nahin ,
Ke bikhar kar Taar-Taar ho jaoge ,
Jawan abhi mara nahin .
Us lahoo ka har ek boond ,
Ab bhi seene me behta hai ,
Unki qurbaani ke har ek lamhe ko ,
Yeh dil salam karta hai .
Sarhad par girne waala ,
Har ek jism nurani tha ,
Marte-Marte dus maar giraya ,
haan wo khoon Hindustani tha.

Rang badalta har mausam ,
Bas yahin suhana lagta hai ,
Mere mulq ki mitti ke aage ,
Sansaar purana lagta hai .
Sabse alag mere ,
Bharat ki rawani hai ,
Har ek guzarte pal me iske ,
Hazaron ansuni kahani hai .
Haan hum is desh ke waasi hain ,
Jahan roz hi danga rehta hai ,
Yahan aam aadmi sadkon par ,
Aadha sa nanga rehta hai ,
Is haal me bhi , Is daur me bhi ,
Har dil mein Tiranga rehta hai ..

AQUIB AHMED


2. Jahan Daal-Daal Par – जहाँ डाल-डाल पर | desh bhakti ki kavita

जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा
जहाँ सत्य, अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा
वो भारत देश है मेरा
ये धरती वो जहाँ ऋषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला
जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला
जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा
वो भारत देश है मेरा
अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले
कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले
जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा
वो भारत देश है मेरा
जब आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले
जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले
प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा
वो भारत देश है मेरा

– राजेंद्र किशन

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3. Aaj Tiranga Fahrata Hai – आज तिरंगा फहराता है | desh bhakti kavita

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।
व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।
हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।
लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।
विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।

-सजीवन मयंक


4. Utho Dhara Ke Amar Saputon – उठो धरा के अमर सपूतों

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नई प्रात है नई बात है
नया किरन है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में
नई-नई मुस्कान भरो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।1।।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें
मस्त उधर मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नव गान भरो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।2।।
कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुँजित जग-उद्यान करो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।3।।
सरस्वती का पावन मंदिर
शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
तुममें से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।

-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


5. Ae Mere Pyare Watan – ऐ मेरे प्यारे वतन | desh bhakti kavita

ऐ मेरे प्यारे वतन,
ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझ पे दिल कुरबान
तू ही मेरी आरजू़,
तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान
तेरे दामन से जो आए
उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस जुबाँ को
जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगी तेरी शाम
तुझ पे दिल कुरबान
माँ का दिल बनके
कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं-सी बेटी बन के
याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको
उतना तड़पाता है तू
तुझ पे दिल कुरबान
छोड़ कर तेरी ज़मीं को
दूर आ पहुँचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना
तेरे ज़र्रों की कसम हम
जहाँ पैदा हुए
उस जगह पे ही निकले दम
तुझ पे दिल कुरबान

– प्रेम धवन 16 अगस्त 2006

6. Hum Honge Kamyab – हम होंगे कामयाब | desh bhakti kavita in hindi

होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।
होगी शांति चारों ओर, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होगी शांति चारों ओर एक दिन।
नहीं डर किसी का आज एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज एक दिन।

– गिरिजा कुमार माथुर


7. Sarfaroshi Ki Tamanna – सरफ़रोशी की तमन्ना | Desh bhakti kavita in hindi

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

, –राम प्रसाद बिस्मिल


8. Zindagi Ka Raaz – ज़िन्दगी का राज़ | Desh Bhakti Kavita

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना,
‘बिस्मिल’ अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है

-राम प्रसाद बिस्मिल

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DESH BHAKTI KAVITA IN HINDI | DESH BHAKTI KI KAVITA

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9. Mit Gaya Jab Mitane Wala – मिट गया जब मिटने वाला | Desh Bhakti Kavita

मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !
आख़िरी शब दीद के काबिल थी ‘बिस्मिल’ की तड़प,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

-राम प्रसाद बिस्मिल


10. Mukhammas Haif Ke Jispe – मुखम्मस-हैफ़ हम जिसपे | desh bhakti ki kavita

हैफ़ हम जिसपे कि तैयार थे मिट जाने को,
यक-ब-यक हमसे छुड़ाया उसी कासाने को,
आस्माँ क्या यही बाकी था सितम ढाने को,
लाके गुर्बत में जो रक्खा हमें तड़पाने को,
क्या कोई और बहाना न था तरसाने को!
फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी
याद आएगा किसे यह दिल–ए–नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फ़रियाद कभी
हम भी इस बाग़ में थे क़ैद से आज़ाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को
दिल फ़िदा करते हैं क़ुरबान जिगर करते हैं
पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते हैं
खाना वीरान कहां देखिए घर करते हैं
ख़ुश रहो अहल–ए–वतन, हम तो सफ़र करते हैं
जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को
न मयस्सर हुआ राहत से कभी मेल हमें
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें
एक दिन का भी न मंज़ूर हुआ बेल हमें
याद आएगा अलीपुर का बहुत जेल हमें
लोग तो भूल गये होंगे उस अफ़साने को
अंडमान ख़ाक तेरी क्यों न हो दिल में नाज़ां
छूके चरणों को जो पिंगले के हुई है जीशां
मरतबा इतना बढ़े तेरी भी तक़दीर कहां
आते आते जो रहे ‘बॉल तिलक‘ भी मेहमां
‘मांडले‘ को ही यह एज़ाज़ मिला पाने को
बात तो जब है कि इस बात की ज़िदे ठानें
देश के वास्ते क़ुरबान करें हम जानें
लाख समझाए कोई, उसकी न हरगिज़ मानें
बहते हुए ख़ून में अपना न गरेबां सानें
नासेह, आग लगे इस तेरे समझाने को
अपनी क़िस्मत में अज़ल से ही सितम रक्खा था
रंज रक्खा था, मेहन रक्खा था, ग़म रक्खा था
किसको परवाह थी और किसमे ये दम रक्खा था
हमने जब वादी–ए–ग़ुरबत में क़दम रक्खा था
दूर तक याद–ए–वतन आई थी समझाने को
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को!
अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली
एक होती है फक़ीरों की हमेशा बोली
ख़ून में फाग रचाएगी हमारी टोली
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को
अपना कुछ गम नहीं लेकिन ये ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को!
नौजवानों ! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को!
देखें कब तक ये असिरान–ए–मुसीबत छूटें
मादर–ए–हिंद के कब भाग खुलें या फूटें
‘गाँधी अफ़्रीका की बाज़ारों में सडकें कूटें
और हम चैन से दिन रात बहारें लूटें
क्यों न तरजीह दें इस जीने पे मर जाने को
कोई माता की उम्मीदों पे न डाले पानी
ज़िंदगी भर को हमें भेज के काले पानी
मुंह में जल्लाद हुए जाते हैं छाले पानी
आब–ए–खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जायें कहीं उम्र के पैमाने को
मैक़दा किसका है ये जाम-ए-सुबू किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलू किसका है
जो बहे कौम की खातिर वो लहू किसका है
आसमां साफ बता दे तू अदू किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तू तड़पाने को
दर्दमन्दों से मुसीबत की हलावत पूछो
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़–ए–शहादत पूछो
चश्म–ए–गुस्ताख से कुछ दीद की हसरत पूछो
कुश्त–ए–नाज़ से ठोकर की क़यामत पूछो
सोज़ कहते हैं किसे पूछ लो परवाने को
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानों यही मौक़ा है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आए ख़ुशी से झेलो
क़ौम के नाम पे सदक़े पे जवानी दे दो
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं ले लो
देखें कौन आता है इरशाद बजा लाने को

-राम प्रसाद बिस्मिल

11. Kuch Ashaar – कुछ अश‍आर | Desh Bhakti Kavita

इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैं
हमें तोहमत लगाते हैं जो हम फरियाद करते हैं
ये कह कहकर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फत में
वो अब आज़ाद करते हैं वो अब आज़ाद करते हैं
सितम ऐसा नहीँ देखा जफ़ा ऐसी नहीँ देखी
वो चुप रहने को कहते हैं जो हम फरियाद करते हैं

-राम प्रसाद बिस्मिल


12. Na Chahun Maan Duniya Me – न चाहूँ मान दुनिया मे | desh bhakti kavita

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

-राम प्रसाद बिस्मिल


13. Hey Matribhumi – हे मातृभूमि | Desh bhakti kavita in hindi

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।
माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला;
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।
जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।
माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।

-राम प्रसाद बिस्मिल

14. Aruze Kamyabi Par – अरूज़े कामयाबी पर | desh bhakti kavita in hindi

अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा ।
चखायेंगे मजा बरबादी-ए-गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे-वतन हरगिज।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां और तू कहां होगा ।
यह आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे-कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।
शहीदों की चितायों पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।

-राम प्रसाद बिस्मिल


15. Bharat Janani Teri – भारत जननि तेरी | desh bhakti kavita

भारत जननि तेरी जय हो विजय हो ।
तू शुद्ध और बुद्ध ज्ञान की आगार,
तेरी विजय सूर्य माता उदय हो ।।

हों ज्ञान सम्पन्न जीवन सुफल होवे,
सन्तान तेरी अखिल प्रेममय हो ।।

आयें पुनः कृष्ण देखें द्शा तेरी,
सरिता सरों में भी बहता प्रणय हो ।।

सावर के संकल्प पूरण करें ईश,
विध्न और बाधा सभी का प्रलय हो ।।

गांधी रहे और तिलक फिर यहां आवें,
अरविंद, लाला महेन्द्र की जय हो ।।

तेरे लिये जेल हो स्वर्ग का द्वार,
बेड़ी की झन-झन बीणा की लय हो ।।

कहता खलल आज हिन्दू-मुसलमान,
सब मिल के गाओं जननि तेरी जय हो ।।

-राम प्रसाद बिस्मिल


16. Ae Matribhumi – ऐ मातृभूमि | Desh Bhakti Kavita

ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।

अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।

वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ।

-राम प्रसाद बिस्मिल


 17. Fool – फूल | Desh bhakti kavita in hindi

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल
अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल ।

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल
नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

-राम प्रसाद बिस्मिल

DESH BHAKTI KAVITA | DESH BHAKTI KAVITA IN HINDI

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18. Tarana – तराना | desh bhakti kavita in hindi

बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से।
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।

-राम प्रसाद बिस्मिल


19. Desh Ki Khatir – देश की ख़ातिर | desh bhakti kavita

देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर हो
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी ज़ंजीर हो

सर कटे, फाँसी मिले, या कोई भी तद्बीर हो
पेट में ख़ंजर दुधारा या जिगर में तीर हो

आँख ख़ातिर तीर हो, मिलती गले शमशीर हो
मौत की रक्खी हुई आगे मेरे तस्वीर हो

मरके मेरी जान पर ज़ह्मत बिला ताख़ीर हो
और गर्दन पर धरी जल्लाद ने शमशीर हो

ख़ासकर मेरे लिए दोज़ख़ नया तामीर हो
अलग़रज़ जो कुछ हो मुम्किन वो मेरी तहक़ीर हो

हो भयानक से भयानक भी मेरा आख़ीर हो
देश की सेवा ही लेकिन इक मेरी तक़्सीर हो

इससे बढ़कर और भी दुनिया में कुछ ताज़ीर हो
मंज़ूर हो, मंज़ूर हो मंज़ूर हो, मंज़ूर हो

मैं कहूँगा ’राम’ अपने देश का शैदा हूँ मैं
फिर करूँगा काम दुनिया में अगर पैदा हूँ मैं

-राम प्रसाद बिस्मिल


20. Duniya Se Gulami Ka Main Naam – दुनिया से गुलामी का मैं नाम | desh bhakti kavita

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा।
एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।

बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।

यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह,
दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा।

ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में,
हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।

बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,
ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।

जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,
गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।

हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों?
शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।

ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा,
कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।

-राम प्रसाद बिस्मिल

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21. Aazadi-ilahi Khair – आज़ादी-इलाही ख़ैर! | Desh bhakti kavita in hindi

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं।
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में,
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’,
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।

-राम प्रसाद बिस्मिल


22. Desh Hit Piada Hue – देश हित पैदा हुये | desh bhakti kavita

देश हित पैदा हुये हैं देश पर मर जायेंगे
मरते मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे

हमको पीसेगा फलक चक्की में अपनी कब तलक
खाक बनकर आंख में उसकी बसर हो जायेंगे

कर वही बर्गें खिगा को बादे सर सर दूर क्यों
पेशबाए फस्ले गुल है खुद समर कर जायेंगे

खाक में हम को मिलाने का तमाशा देखना
तुख्मरेजी से नये पैदा शजर कर जायेंगे

नौ नौ आंसू जो रूलाते है हमें उनके लिये
अश्क के सैलाब से बरपा हश्र कर जायेंगे

गर्दिशे गरदाब में डूबे तो परवा नहीं
बहरे हस्ती में नई पैदा लहर कर जायेंगे

क्या कुचलते है समझ कर वह हमें बर्गे हिना
अपने खूं से हाथ उनके तर बतर कर जायेंगे

नकशे पर है क्या मिटाता तू हमें पीरे फलक
रहबरी का काम देंगे जो गुजर कर जायेंगे

-राम प्रसाद बिस्मिल


23. Yeh Sabab Hai Jo – यह सबब है जो | Desh Bhakti Kavita

यह सबब है जो हमारी वो खबर रखते नहीं,
बेअसर नाले हैं कुछ ऐसा असर रखते नहीं।

ख़ान:-ए-सय्याद से उड़कर, चमन तक जाएं क्या,
हम तो अपने बाजुओं में बालो-पर रखते नहीं।

सर हथेली पर लिए हैं सरफरोशाने-वतन,
तन से जो उतरे न सर, ऐसा वो सर रखते नहीं।

इस तरह तुम हो गए हो किस लिए यूं बेखबर,
सब की रखते हो खबर मेरी खबर रखते नहीं।

बेहुनर हो कर हुए मशहूर ‘बिस्मिल’ किस तरह,
सच तो यह है वो कोई ऐसा हुनर रखते नहीं।

-राम प्रसाद बिस्मिल

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